خنجر نہ کسی تیر نہ تلوار نے مارا
بیعت کو تو شبیر کے انکار نے مارا
खंजर न किसी तीर न तलवार ने मारा
बैअत को तो शब्बीर के इन्कार ने मारा।
زینب ترے خطبات کی ہیبت کے اثر سے
دیوار پہ سر اپنا ستمگار نے مارا
ज़ैनब तिरे ख़ुतबात की हैबत के असर से
दीवार पे सर अपना सितमगार ने मारा।
دو حصوں میں ہم وزن کٹا دشمنِ حیدر
یوں اپنا عدو حیدرِ کرار نے مارا
दो हिस्सों में हम वज़्न कटा दुश्मने हैदर
यूँ अपना अदू हैदरे कर्रार ने मारा।
جن لوگوں نے مارا تھا حسین ابن علی کو
تڑپا کے اُنہیں حضرتِ مختار نے مارا
जिन लोगों ने मारा था हुसैन इब्ने अली को
तड़पाके उन्हें हज़रते मुख़तार ने मारा।
خود مر گئے ہیبت سے نگاہوں کی ستمگر
کب تیغ سے دشمن کو علمدار نے مارا
ख़ुद मर गए हैबत से निगाहों की सितमगर
कब तेग़ से दुश्मन को अलमदार ने मारा।
عسکری عارف
असकरी आरिफ़