غزل
सरों पर ख़ौफ़ का साया बहोत है
मिरी बस्ती में सन्नाटा बहोत है।
कहाँ तक मौत को झुठलाओगे तुम
अजल का फ़ैसला सच्चा बहोत है।
जिसे महफ़िल की ज़ीनत जानते हो
वो अपने आप में तनहा बहोत है।
जो मरने से बचा हो हादसे में
उसे वो एक ही लमहा बहोत है।
हो जिसके ख़ून में ज़िंदाज़मीरी
हक़ीक़त में वही ज़िंदा बहोत है।
हमेशा जो हंसा करता है आरिफ़
वही तनहाई में रोता बहोत है।
असकरी आरिफ़
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