थी सर बरहना इ़तरते अतहार शाम तक
कैसे गए हैं आबिदे बीमार शाम तक।
हर गाम थीं अज़ीयतें बीमार पर मगर
बातिल से हर मक़ाम था इन्कार शाम तक।
बादे हुसैन सैय्यदे सज्जाद ज़ुल्म से
हर इक क़दम थे बरसरे पैकार शाम तक।
ग़ैरत से अपने सर को झुका लेते थे इमाम
आया सफ़र में जब कोई बाज़ार शाम तक।
ज़जीर, तौक़, हथकड़ी, बेड़ी बदन पे था
आबिद थे फिर भी काफ़ेला सालार शाम तक।
यूं मारे ज़ालिमों ने तमाचे न पूछिए
ज़ख़्मी हुए सकीना के रुख़्सार शाम तक।
इक दोपहर में क़त्ल हुआ लश्करे हुसैन
और लुट गया बतूल का घरबार शाम तक।
आबिद ने वो जेहाद भी तस्ख़ीर कर लिया
जिसमें हर एक सांस थी दुश्वार शाम तक।
इक दो नहीं इमाम ने 'आरिफ़' हज़ार बार
ख़ुद को किया है दीन पे ईसार शाम तक।
असकरी आ़रिफ़
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