आ गये फिर से करोड़ों ज़ायरीन ए करबला
हो गयी फिर से कुशादा सरज़मीन ए करबला।
और कोई इलतिजा तुझसे नहीं इसके सिवा
हो मिरी क़िस्मत में मालिक अरबईन ए करबला।
आम इन्सानों के जैसे वो नहीं मरता कभी
जिस की रग रग में समा जाये यक़ीन ए करबला।
इससे बढ़कर दूसरा कोई शरफ़ होगा नहीं
उम्र भर मैं बन के रह जाऊं रहीन ए करबला।
सीस्तानी तेरे इक फ़तवे ने कुचले उनके फन
जो छुपे थे साँप ज़ेरे आस्तीन ए करबला।
मिट गयी सारी मसाफ़त की थकन कुछ देर में
आ गये ज़व्वार ए सरवर जब क़रीन ए करबला।
हालत ए एहराम में गर मौत आ जाये उन्हें
फिर भी नारी ही रहेंगे मुनकेरीन ए करबला।
बादे आशूरा हैं दुनिया में फ़कत अदियान दो
एक दीन ए शाम है और एक दीन ए करबला।
रोज़ करते हैं ज़ियारत रौज़ए शब्बीर की
किस क़दर ख़ुशबख़्त हैं आरिफ़ मकीन ए करबला।
असकरी आरिफ़
No comments:
Post a Comment