تازہ منقبت
فلک میں کتنے ہیں تارے؟ عدد نہیں معلوم
مجھے علی ع. کے فضائل کی حد نہیں معلوم
फ़लक में कितने हैं तारे? अदद नहीं मालूम
मुझे अ़ली के फ़ज़ाएल की हद नहीं मालूम।
شراب عشق علی ع. کے نشے میں ڈوبا ہوں
ہے کس مقام پہ میری خرد نہیں معلوم
शराब ए इश्क़ ए अ़ली के नशे में डूबा हूँ
है किस मक़ाम पा मेरी ख़िरद नहीं मालूम।
کوئی تو ہے جو کھلاتا ہے ہم فقیروں کو
کہاں سے آتی ہے اپنی رسد نہیں معلوم
कोई तो है जो खिलाता है हम फ़क़ीरों को
कहाँ से आती है अपनी रसद नहीं मालूम।
مجھے تو اِس سے غرض ہے علی ع. کو دیکھوں گا
جو مجھ پہ گزرے گی زیرِ لحد نہیں معلوم
मुझे तो इससे ग़रज़ है अ़ली को देखूँगा
जो मुझपे गुज़रेगी ज़ेर ए लहद नहीं मालूम।
علی ع. کے نام سے کرتا ہوں ابتدائے سخن
کہاں سے آتی ہے مجھ کو مدد نہیں معلوم
अ़ली के नाम से करता हूँ इब्तिदा ए सुख़न
कहाँ से आती है मुझको मदद नहीं मालूम।
علی ع. کی ذات سے ہے عشق لازمی عارف
ہے کیوں کسی کو علی ع. سے حسد نہیں معلوم
अ़ली की ज़ात से है इश्क़ लाज़मी आ़रिफ़
है क्यों किसी को अ़ली से हसद नहीं मालूम।
असकरी आरिफ़
عسکری عارف
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