سلام

ताज़ा सलाम
बेरिदा  उजड़ी   हुई   इतरते  अतहार  का   ग़म
खा गया सैय्यद ए सज्जाद को बाज़ार का ग़म।

उम्र  भर  भूल  नहीं  पाये  इमाम ए सज्जाद
नन्ही बच्ची के लहू से भरे रुख़सार का ग़म।

किसकी  ग़ैरत  है  जो माओं को खुले सर देखे
कौन समझेगा भला आबिद ए बीमार का ग़म।

ज़ब्त  किस तरह  बहत्तर का  किया ज़ैनब ने
ख़त्म कर देता है इन्सान को दो चार का ग़म।

धूप  में   बैठी   हुई   बैन   ये   करती  थी   रुबाब
मुझको करना है मिरे सैय्यद ओ सरदार का ग़म।

यूं तो हर ग़म  पा  किया  शाह ने अफ़सोस मगर
कुछ ज़ियादा था शहे दीं को अलमदार का ग़म।

मश्क  छिदने का  अलमदार को ग़म मार गया
कब था अब्बास को टूटी हुई तलवार का ग़म।

आ गयी मौत की हिचकी अ़ली अकबर को मगर
दिल में पैवस्त रहा फ़ुरक़त ए बीमार का ग़म।

ये  तो  सरवर  का  कलेजा   था  वगरना  'आरिफ़'
कौन सह सकता है अकबर से जिगरदार का ग़म।
असकरी आरिफ़

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